चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य

 




#भारत में #चक्रवर्ती सम्राट उसे कहा जाता है

जिसका संपूर्ण भारत में राज रहा है।


#ऋषभदेव के पुत्र राजा भरत पहले चक्रवर्ती

सम्राट थे,जिनके नाम पर ही इस अजनाभखंड

का नाम #भारत पड़ा।


परवर्तीकाल में शकुंतला एवं दुष्यंत के भरत

नाम के पुत्र हुए।


उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य भी चक्रवर्ती

सम्राट थे।


विक्रमादित्य का नाम विक्रम सेन था।

विक्रम वेताल और सिंहासन बत्तीसी की

कहानियां महान सम्राट विक्रमादित्य से

ही जुड़ी हुई है।


सम्राट विक्रमादित्य गर्दभिल्ल वंश के शासक

थे इनके पिता का नाम राजा गर्दभिल्ल था।


सम्राट विक्रमादित्य ने शको को

पराजित किया था।


उनके पराक्रम को देखकर ही उन्हें महान

सम्राट कहा गया और उनके नाम की उपाधि

कुल 14 भारतीय राजाओं को दी गई ।


"विक्रमादित्य" की उपाधि भारतीय इतिहास में

बाद के कई अन्य राजाओं ने प्राप्त की थी,

जिनमें गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय और सम्राट

हेमचन्द्र विक्रमादित्य(जो हेमु के नाम से प्रसिद्ध थे) 

उल्लेखनीय हैं।


राजा विक्रमादित्य नाम, 'विक्रम' और 'आदित्य'

के समास से बना है जिसका अर्थ 'पराक्रम का

सूर्य' या 'सूर्य के समान पराक्रमी' है।


उन्हें विक्रम या विक्रमार्क (विक्रम + अर्क) भी

कहा जाता है (संस्कृत में अर्क का अर्थ सूर्य है)।

 

 

विक्रमादित्य का परिचय : विक्रम संवत अनुसार 

विक्रमादित्य आज से 2288 वर्ष पूर्व हुए थे।


नाबोवाहन के पुत्र राजा गंधर्वसेन

भी चक्रवर्ती सम्राट थे।


राजा गंधर्व सेन का एक मंदिर मध्यप्रदेश के

सोनकच्छ के आगे गंधर्वपुरी में बना हुआ है।

यह गांव बहुत ही रहस्यमयी गांव है।


उनके पिता को महेंद्रादित्य भी कहते थे।


उनके और भी नाम थे जैसे गर्द भिल्ल,

गदर्भवेष।


गंधर्वसेन के पुत्र विक्रमादित्य और भर्तृहरी थे।


विक्रम की माता का नाम सौम्यदर्शना था

जिन्हें वीरमती और मदनरेखा भी कहते थे।


उनकी एक बहन थी जिसे मैनावती कहते थे।

उनके भाई भर्तृहरि के अलावा शंख और अन्य

भी थे जो अन्य माताओं के पुत्र थे।

 

 

उनकी पांच पत्नियां थी,मलयावती,मदनलेखा,

पद्मिनी, चेल्ल और चिल्लमहादेवी।


उनकी दो पुत्र विक्रमचरित और विनयपाल

और दो पुत्रियां प्रियंगुमंजरी (विद्योत्तमा)और

वसुंधरा थीं।


गोपीचंद नाम का उनका एक भानजा था।

प्रमुख मित्रों में भट्टमात्र का नाम आता है।


राज पुरोहित त्रिविक्रम और वसुमित्र थे।

मंत्री भट्टि और बहसिंधु थे।

सेनापति विक्रमशक्ति और चंद्र थे।


कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने

पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य

का जन्म हुआ।

उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया।

-(गीता प्रेस,गोरखपुर भविष्यपुराण,पृष्ठ 245)। 


विक्रमादित्य भारत की प्राचीन नगरी उज्जयिनी

के राजसिंहासन पर बैठे।

विक्रमादित्य अपने ज्ञान,वीरता और उदारशीलता

के लिए प्रसिद्ध थे जिनके दरबार में नवरत्न रहते थे। 


कहा जाता है कि विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी

थे और उन्होंने शकों को परास्त किया था।


सम्राट विक्रमादित्य अपने राज्य की जनता के

कष्टों और उनके हालचाल जानने के लिए छद्मवेष

धारण कर नगर भ्रमण करते थे।


राजा विक्रमादित्य अपने राज्य में न्याय व्यवस्था

कायम रखने के लिए हर संभव कार्य करते थे।


इतिहास में वे सबसे लोकप्रिय और न्यायप्रीय

राजाओं में से एक माने गए हैं। 

 

कहा जाता है कि मालवा में विक्रमादित्य के

भाई भर्तृहरि का शासन था।


भर्तृहरित के शासन काल में शको का आक्रमण

बढ़ गया था।


भर्तृहरि ने वैराग्य धारण कर जब राज्य त्याग

दिया तो विक्रम सेना ने शासन संभाला और

उन्होंने ईसा पूर्व 57-58 में सबसे पहले शको

को अपने शासन क्षेत्र से बहार खदेड़ दिया।


इसी की याद में उन्होंने विक्रम संवत की

शुरुआत कर अपने राज्य के विस्तार का

आरंभ किया।


विक्रमादित्य ने भारत की भूमि को विदेशी

शासकों से मुक्ति कराने के लिए एक वृहत्तर

अभियान चलानाय।


कहते हैं कि उन्होंने अपनी सेना की फिर से

गठन किया।


उनकी सेना विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना

बई गई थी,जिसने भारत की सभी दिशाओं में

एक अभियान चलाकर भारत को विदेशियों

और अत्याचारी राजाओं से मुक्ति कर एक

छत्र शासन को कायम किया।


💐#ऐतिहासिक_व्यक्ति💐:


कल्हण की 'राजतरंगिणी' के अनुसार 14 ई. के 

आसपास कश्मीर में अंध्र युधिष्ठिर वंश के राजा

हिरण्य के नि:संतान मर जाने पर अराजकता

फैल गई थी।


जिसको देखकर वहां के मंत्रियों की सलाह से

उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने मातृगुप्त को

कश्मीर का राज्य संभालने के लिए भेजा था।


नेपाली राजवंशावली अनुसार नेपाल के राजा

अंशुवर्मन के समय (ईसापूर्व पहली शताब्दी)

में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नेपाल

आने का उल्लेख मिलता है।

 

 

राजा विक्रम का भारत की संस्कृत,प्राकृत,

अर्द्धमागधी,हिन्दी,गुजराती,मराठी,बंगला

आदि भाषाओं के ग्रंथों में विवरण मिलता है।


उनकी वीरता,उदारता,दया,क्षमा आदि गुणों

की अनेक गाथाएं भारतीय साहित्य में भरी पड़ी हैं।

 

💐#विक्रमादित्य_के_नवरत्नों_के_नाम💐:


नवरत्नों को रखने की परंपरा महान सम्राट

विक्रमादित्य से ही शुरू हुई है जिसे तुर्क बादशाह

अकबर ने भी अपनाया था।


सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों के नाम धन्वंतरि, 

क्षपणक,अमरसिंह,शंकु,बेताल भट्ट,घटखर्पर,

कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि कहे जाते हैं।


इन नवरत्नों में उच्च कोटि के विद्वान,श्रेष्ठ कवि,

गणित के प्रकांड विद्वान और विज्ञान के विशेषज्ञ

आदि सम्मिलित थे।

 

 

💐#विक्रम_संवत_के_प्रवर्तक💐:


देश में अनेक विद्वान ऐसे हुए हैं,जो विक्रम संवत

को उज्जैन के राजा विक्रमादित्य द्वारा ही प्रवर्तित

मानते हैं।


इस संवत के प्रवर्तन की पुष्टि ज्योतिर्विदाभरण

ग्रंथ से होती है,जो कि 3068 कलि अर्थात 34

ईसा पूर्व में लिखा गया था।

इसके अनुसार विक्रमादित्य ने 3044 कलि

अर्थात 57 ईसा पूर्व विक्रम संवत चलाया।

 

💐#अरब_तक_फैला_था

💐#विक्रमादित्य_का_शासन : 


महाराजा विक्रमादित्य का सविस्तार वर्णन

भविष्य पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है।


विक्रमादित्य के बारे में प्राचीन अरब साहित्य

में वर्णन मिलता है।


उस काल में उनका शासन अरब तक फैला था। 


वस्तुतः विक्रमादित्य का शासन अरब और मिस्र

तक फैला था और संपूर्ण धरती के लोग उनके

नाम से परिचित थे।

 

इतिहासकारों के अनुसार उज्जैन के सम्राट

विक्रमादित्य का राज्य भारतीय उपमहाद्वीप

के अतिरिक्त ईरान,इराक और अरब में भी था। 


विक्रमादित्य की अरब विजय का वर्णन अरबी

कवि जरहाम किनतोई ने अपनी पुस्तक 

'सायर-उल-ओकुल' में किया है।


पुराणों और अन्य इतिहास ग्रंथों के अनुसार यह

पता चलता है कि अरब और मिस्र भी विक्रमादित्य

के अधीन थे।

 

 

तुर्की के इस्ताम्बुल शहर की प्रसिद्ध लायब्रेरी 

💐#मकतब_ए_सुल्तानिया में एक ऐतिहासिक

ग्रंथ है 💐#सायर_उल_ओकुल।


उसमें राजा विक्रमादित्य से संबंधित एक

शिलालेख का उल्लेख है जिसमें कहा गया

है कि '…वे लोग अत्यंत भाग्यशाली हैं,

जो उस काल में जन्मे और राजा विक्रम के

राज्य में जीवन व्यतीत किया।


वह बहुत ही दयालु, उदार और कर्तव्यनिष्ठ

शासक था, जो हरेक व्यक्ति के कल्याण के

बारे में सोचता था।

...उसने अपने पवित्र धर्म को हमारे बीच

फैलाया,अपने देश के सूर्य से भी तेज विद्वानों

को इस देश में भेजा ताकि शिक्षा का उजाला

फैल सके।


इन विद्वानों और ज्ञाताओं ने हमें भगवान की

उपस्थिति और सत्य के सही मार्ग के बारे में

बताकर एक परोपकार किया है।


ये तमाम विद्वान राजा विक्रमादित्य के निर्देश

पर अपने धर्म की शिक्षा देने यहां आए…।'


अन्य सम्राट जिनके नाम के आगे विक्रमादित्य

लगा है:-यथा श्रीहर्ष,शूद्रक,हल,चंद्रगुप्त द्वितीय, 

शिलादित्य,यशोवर्धन आदि।


वस्तुतः आदित्य शब्द देवताओं से प्रयुक्त है।

आदित्य अर्थात सूर्य जो सृष्टि को आलोकित

करते रहते हैं।


【(परवर्ती काल में विक्रमादित्य की प्रसिद्धि

के बाद राजाओं को 'विक्रमादित्य उपाधि'

दी जाने लगी।

 

विक्रमादित्य के पहले और बाद में और भी

विक्रमादित्य हुए हैं जिसके चलते भ्रम की

स्थिति उत्पन्न होती है।


उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बाद

300 ईस्वी में समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त

द्वितीय अथवा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य हुए।

 

एक विक्रमादित्य द्वितीय 7वीं सदी में हुए,

जो विजयादित्य (विक्रमादित्य प्रथम) के पुत्र थे। 


विक्रमादित्य द्वितीय ने भी अपने समय में चालुक्य

साम्राज्य की शक्ति को अक्षुण्ण बनाए रखा।


विक्रमादित्य द्वितीय के काल में ही लाट देश

(दक्षिणी गुजरात) पर अरबों ने आक्रमण किया। 


विक्रमादित्य द्वितीय के शौर्य के कारण अरबों

को अपने प्रयत्न में सफलता नहीं मिली और

यह प्रतापी चालुक्य राजा अरब आक्रमण से

अपने साम्राज्य की रक्षा करने में समर्थ रहा।

 

पल्‍लव राजा ने पुलकेसन को परास्‍त कर

मार डाला।


उसका पुत्र विक्रमादित्‍य,जो कि अपने पिता

के समान महान शासक था,गद्दी पर बैठा।


उसने दक्षिण के अपने शत्रुओं के विरुद्ध पुन:

संघर्ष प्रारंभ किया।


उसने चालुक्‍यों के पुराने वैभव

को पुन: प्राप्‍त किया।


यहां तक कि उसका परपोता विक्रमादित्‍य

द्वितीय भी महान योद्धा था।


753 ईस्वी में विक्रमादित्‍य व उसके पुत्र का

दंती दुर्गा नाम के एक सरदार ने तख्‍ता पलट

दिया।


उसने महाराष्‍ट्र व कर्नाटक में एक और महान

साम्राज्‍य की स्‍थापना की,जो राष्‍ट्र कूट कहलाया।

 

विक्रमादित्य द्वितीय के बाद 15वीं सदी में

सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य 'हेमू' हुए।


सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के बाद

'विक्रमादित्य पंचम' सत्याश्रय के बाद

कल्याणी के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुए।


उन्होंने लगभग 1008 ई. में चालुक्य राज्य

की गद्दी को संभाला।


भोपाल के राजा भोज के काल

में यही विक्रमादित्य थे।

 

विक्रमादित्य पंचम ने अपने पूर्वजों की नीतियों

का अनुसरण करते हुए कई युद्ध लड़े।


उसके समय में मालवा के परमारों के साथ

चालुक्यों का पुनः संघर्ष हुआ और वाकपतिराज

मुञ्ज की पराजय व हत्या का प्रतिशोध करने के

लिए परमार राजा भोज ने चालुक्य राज्य पर

आक्रमण कर उसे परास्त किया,लेकिन एक

युद्ध में विक्रमादित्य पंचम ने राजा भोज को

भी हरा दिया था।)】

💐#साभार_संकलित💐


【【(शाक्यद्वीप (वर्तमान-Egypt या मिस्र)

से आये आक्रांताओं को "शक" कहा गया है।

उन्होंने समुद्री मार्ग से प्रवेश कर आक्रमण किया

और सम्पूर्ण दक्षिणी भारत पर आधिपत्य कर

लिया।

शक भी सनातन धर्मावलंबी थे किंतु क्रमशः

उत्तर भारत की ओर बढ़ते गए।


इसी क्रम में उन्होंने भारतीयों पर अनेक

अत्याचार किये,उनकी वंशवृद्धि भी होती

गयी जिस कारण से उनके साम्राज्य का

विस्तार होता गया।


उनमें शालिवाहन नाम का प्रमुख उल्लेखनीय

शासक था और उसने शालिवाहन (शकसंवत)

नाम का संवत प्रवर्तित किया।(चलाया)


शकों के विस्तारवादी नीति में विक्रमादित्य

बाधक हुए,उन्होंने उन्हें परास्त कर सम्पूर्ण

भारत में एकक्षत्र राज्य स्थापित किया।


शक यहां की संस्कृति एवं संस्कार में

एकाकार हो गए।


काल गणना के समय भी विक्रम संवत के

साथ साथ शक सम्वत का भी उल्लेख

होता है क्यों कि दोनों विधि से काल

गणना का आधार एक ही है।】】


परवर्ती काल में मुगल आक्रांताओं एवं

अंग्रेज आक्रांताओं के कारण हमारा

इतिहास लुप्त सा हो गया,इतिहास पर

शोध सर्वथा


#अंतिम_चक्रवर्ती_सम्राट_पृथ्वीराज_चौहान हुए


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