विश्वामित्र का भारत- Part 1 Hindi
विश्वामित्र का भारत- Part 1 Hindi
विश्वामित्र
वैदिक काल के विख्यात
ऋषि (योगी) थे। विश्वामित्र बड़े ही प्रतापी
और तेजस्वी महापुरुष थे।
पौराणिक धर्म ग्रंथों के
अनुसार यह माना जाता
है कि उन्होंने कई
वर्ष तक सफलतापूर्वक राज्य
किया था। विश्वामित्र अपने
समय के वीर और
ख्यातिप्राप्त राजाओं में गिने
जाते थे। ऋषि धर्म
ग्रहण करने के पूर्व
वे बड़े पराक्रमी और
प्रजावत्सल नरेश थे !लम्बे
समय तक राज्य करने
के बाद वे पृथ्वी
की परिक्रमा के लिए निकले।
पुरुषार्थ, सच्ची लगन, उद्यम
और तप की गरिमा
के रूप में महर्षि
विश्वामित्र के समान शायद
ही कोई हो। इन्होंने
अपने पुरुषार्थ से, अपनी तपस्या
के बल से क्षत्रियत्व
से ब्रह्मत्व प्राप्त किया, राजर्षि से
ब्रह्मर्षि बने, देवताओं और
ऋषियों के लिये पूज्य
बन गये। विश्वामित्र को
सप्तर्षियों में अन्यतम स्थान
प्राप्त हुआ था। अपनी
तपस्या के बल और
योग से वे सभी
के लिए वन्दनीय भी
बन गय थे।
विश्वामित्र
तपस्या के धनी थे।
इन्हें गायत्री-माता सिद्ध थीं
और इनकी पूर्ण कृपा
इन्होंने प्राप्त की थी। नवीन
सृष्टि तथा त्रिशंकु को
सशरीर स्वर्ग आदि भेजने
और ब्रह्मर्षि पद प्राप्त करने
जैसे असम्भव कार्य विश्वामित्र
ने किये।
ऋग्वेद के दस
मण्डलों में तृतीय मण्डल,
जिसमें 62 सूक्त हैं, इन
सभी सूक्तों के द्रष्टा ऋषि
विश्वामित्र ही हैं।
विश्वामित्र जी गाधि के पुत्र थे। विश्वामित्र शब्द विश्व और मित्र से बना है जिसका अर्थ है- सबके साथ मैत्री अथवा प्रेम। एक दिन राजा विश्वामित्र अपनी सेना को लेकर वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में गये। विश्वामित्र जी उन्हें प्रणाम करके वहीं बैठ गये। वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र जी का यथोचित आदर सत्कार किया और उनसे कुछ दिन आश्रम में ही रह कर आतिथ्य ग्रहण करने का अनुरोध किया। इस पर यह विचार करके कि मेरे साथ विशाल सेना है और सेना सहित मेरा आतिथ्य करने में वशिष्ठ जी को कष्ट होगा, विश्वामित्र जी ने नम्रतापूर्वक अपने जाने की अनुमति माँगी किन्तु वशिष्ठ जी के अत्यधिक अनुरोध करने पर थोड़े दिनों के लिये उनका आतिथ्य स्वीकार कर लिया।
वशिष्ठ जी ने नंदिनी गौ का आह्वान करके विश्वामित्र तथा उनकी सेना के लिये छः प्रकार के व्यंजन तथा समस्त प्रकार के सुख सुविधा की व्यवस्था कर दिया। वशिष्ठ जी के आतिथ्य से विश्वामित्र और उनके साथ आये सभी लोग बहुत प्रसन्न हुये। नंदिनी गौ का चमत्कार देखकर विश्वामित्र ने उस गौ को वशिष्ठ जी से माँगा पर वशिष्ठ जी बोले राजन! यह गौ मेरा जीवन है और इसे मैं किसी भी कीमत पर किसी को नहीं दे सकता।वशिष्ठ जी के इस प्रकार कहने पर विश्वामित्र ने बलात् उस गौ को पकड़ लेने का आदेश दे दिया और उसके सैनिक उस गौ को डण्डे से मार मार कर हाँकने लगे। नंदिनी गौ ने क्रोधित होकर उन सैनिकों से अपना बन्धन छुड़ा लिया और वशिष्ठ जी के पास आकर विलाप करने लगी। वशिष्ठ जी बोले कि हे नंदिनी! यह राजा मेरा अतिथि है इसलिये मैं इसको शाप भी नहीं दे सकता और इसके पास विशाल सेना होने के कारण इससे युद्ध में भी विजय प्राप्त नहीं कर सकता। मैं स्वयं को विवश अनुभव कर रहा हूँ। उनके इन वचनोंको सुन कर नंदिनी ने कहा कि हे ब्रह्मर्षि! आप मुझे आज्ञा दीजिये, मैं एक क्षण में इस क्षत्रिय राजा को उसकी विशाल सेनासहित नष्ट कर दूँगी। और कोई उपाय न देख कर वशिष्ठ जी ने नंदिनी को अनुमति दे दी।
अपनी सेना तथा पुत्रों
के नष्ट हो जाने
से विश्वामित्र बड़े दुःखी हुये।
अपने बचे हुये पुत्र
को राज सिंहासन सौंप
कर वे तपस्या करने
के लिये हिमालय की
कन्दराओं में चले गये।
कठोर तपस्या करके विश्वामित्र
जी ने महादेव जी
को प्रसन्न कर लिया ओर
उनसे दिव्य शक्तियों के
साथ सम्पूर्ण धनुर्विद्या के ज्ञान का
वरदान प्राप्त कर लिया।
सुनील सिंह- चिन्मय
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