कुमार स्कन्दगुप्त का भारत

 




हूण जाति की नृशंसता इतनी थी कि चीन से लेकर महान रोमन साम्राज्य तक काँप उठे थे। इस अकेली बर्बर जाति का आतंक इतना था कि उसने उस समय के किसी भी बड़े साम्राज्य को रौंदे बिना नहीं छोड़ा। 

चीन का विशाल साम्राज्य तो इतना भयाक्रांत हुआ कि उसने हूणों से लड़ने का विचार ही छोड़ दिया और रक्षात्मक होकर खुद को ऊँचे ऊँचे सैकड़ों किलोमीटर की दीवार से घेर लिया।

 जब चीन आत्मसमर्पित हुआ तो ये हूण अपनी एक टुकड़ी के साथ यूरोप की ओर दौड़ पड़ा। "आटिला" नाम के उसके सेनापति ने पोलैंड को मिट्टी में मिला दिया फिर एक एक कर यूरोप के बाकी देशों में खून की नदियाँ बहा दी। इन हूणों के कारण विशाल रोमन साम्राज्य मिट्टी में मिल गया तो इस विजयोन्माद में उन हूणों की टुकड़ी ने भारत का भी रुख किया और गांधार प्रदेश पहुँच गये।

      वहां विजय प्राप्त कर जब वो सिंध को निगलने आगे बढ़े तो वहां उसे रोकने के लिए वैदिक सूर्य कुमारगुप्त का महान प्रतापी राज्य खड़ा था।


कुमारगुप्त ने इन बर्बर हूणों के समूल नाश के लिए किसी और सेनापति को न भेजकर अपने पुत्र राजकुमार स्कंद को भेजा। हूणों की विशाल और बर्बर टोली को स्कंद ने रौंद दिया 


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